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विषय सूची
- परिचय
- ऑपरेशन सिंदूर क्या है?
- अब तक की कार्रवाई और आंकड़े
- कैसे हुई अप्रवासियों की वापसी?
- राज्यों की भूमिका
- मूल कारण और सरकारी रणनीति
- प्रभावित क्षेत्र और राज्य
- भविष्य की योजनाएँ और चुनौतियाँ
- सारांश
- हमारी राय और सुझाव
परिचय
हाल ही में भारत सरकार ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत देश में रह रहे अवैध बांग्लादेशी अप्रवासियों के खिलाफ एक बड़ा अभियान शुरू किया है। इस ऑपरेशन के तहत अब तक 2,000 से अधिक अवैध अप्रवासियों को बांग्लादेश वापस भेजा जा चुका है। इस पोस्ट में हम आपको विस्तार से बताएंगे कि यह ऑपरेशन क्या है, कैसे चलाया गया, किन राज्यों में सबसे ज्यादा कार्रवाई हुई, और इसका भविष्य में क्या असर पड़ सकता है।
ऑपरेशन सिंदूर भारत-बांग्लादेश सीमा पर सुरक्षा और अवैध अप्रवासन की समस्या को हल करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
ऑपरेशन सिंदूर क्या है?
ऑपरेशन सिंदूर भारत सरकार द्वारा 7 मई 2025 को शुरू किया गया एक विशेष अभियान है, जिसका उद्देश्य देश में रह रहे अवैध बांग्लादेशी अप्रवासियों की पहचान कर उन्हें उनके देश वापस भेजना है। इस ऑपरेशन के तहत देशभर में सत्यापन अभियान चलाया गया, जिसमें दस्तावेज़ों की जांच के बाद जिन लोगों के पास वैध कागजात नहीं थे, उन्हें बॉर्डर तक पहुंचाया गया।
अब तक की कार्रवाई और आंकड़े
कार्रवाई | आंकड़े |
---|---|
ऑपरेशन सिंदूर की शुरुआत | 7 मई 2025 |
अब तक वापस भेजे गए अप्रवासी | 2,000+ |
स्वेच्छा से बॉर्डर पहुंचे अप्रवासी | लगभग 2,000 |
प्रमुख राज्य | गुजरात, दिल्ली, हरियाणा, असम, त्रिपुरा, मेघालय, महाराष्ट्र, राजस्थान |
इस अभियान के दौरान कई ऐसे अप्रवासी भी सामने आए जो डर के कारण खुद ही बॉर्डर पर पहुंच गए ताकि वे स्वेच्छा से बांग्लादेश लौट सकें।
कैसे हुई अप्रवासियों की वापसी?
भारतीय वायुसेना (IAF) के विमानों से इन अप्रवासियों को देश के विभिन्न हिस्सों से सीमा तक लाया गया। सीमा पर BSF (Border Security Force) ने इन्हें अस्थायी शिविरों में रखा, जहां उन्हें भोजन और जरूरत पड़ने पर बांग्लादेशी मुद्रा भी दी गई। कुछ घंटों की हिरासत के बाद इन्हें बांग्लादेश की सीमा पार करवा दिया गया[1][5]।
राज्यों की भूमिका
गुजरात सबसे पहले इस अभियान में आगे आया और सबसे ज्यादा अप्रवासियों को वापस भेजा। दिल्ली और हरियाणा ने भी बड़ी संख्या में अप्रवासियों को वापस भेजने में अहम भूमिका निभाई। इसके अलावा असम, त्रिपुरा, मेघालय, महाराष्ट्र और राजस्थान से भी अप्रवासियों को बॉर्डर तक पहुंचाया गया[1][5]।
मूल कारण और सरकारी रणनीति
इस ऑपरेशन के पीछे मुख्य कारण देश की सुरक्षा और अवैध अप्रवासियों की बढ़ती संख्या है। गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि दस्तावेज़ों की जांच के बाद अवैध अप्रवासियों को वापस भेजा जाए। राज्यों ने भी इस दिशा में केंद्र सरकार का पूरा सहयोग किया है।
एक अधिकारी के अनुसार, यह प्रक्रिया सतत है और खासकर उन राज्यों में तेजी से चल रही है जहां आर्थिक गतिविधियां अधिक हैं। अप्रैल में पहलगाम हमलों के बाद इस दिशा में केंद्रित प्रयास शुरू हुआ, और ऑपरेशन सिंदूर के बाद इसमें और तेजी आई[5]।
प्रभावित क्षेत्र और राज्य
त्रिपुरा, मेघालय और असम जैसे राज्यों में यह कार्रवाई तेज़ी से चल रही है। इन राज्यों को इसलिए चुना गया क्योंकि यहां से बॉर्डर पार करवाना आसान है। वहीं, पश्चिम बंगाल में सीमा की प्रकृति और पारिवारिक संबंधों के कारण कानून-व्यवस्था की समस्या हो सकती थी, इसलिए वहां फिलहाल यह प्रक्रिया धीमी है[1][5]।
भविष्य की योजनाएँ और चुनौतियाँ
अधिकारियों का मानना है कि यदि यह संख्या बढ़कर 10,000 या 20,000 प्रति सप्ताह हो जाती है, तो बांग्लादेश में आधिकारिक स्तर पर बेचैनी हो सकती है। सरकार अब सभी वापस भेजे जा रहे अप्रवासियों का बायोमेट्रिक डेटा भी कैप्चर कर रही है, ताकि दोबारा अवैध प्रवेश को रोका जा सके।
हालांकि, यह भी देखा गया है कि पहले भी ऐसे प्रयास हुए हैं, लेकिन कई बार अप्रवासी वापस लौट आते हैं। इसलिए सरकार इस बार डेटा इंटीग्रेशन और निगरानी पर विशेष ध्यान दे रही है[1][5]।
सारांश
ऑपरेशन सिंदूर भारत की सुरक्षा और अवैध अप्रवासन की समस्या से निपटने की दिशा में एक बड़ा कदम है। अब तक 2,000 से अधिक अवैध बांग्लादेशी अप्रवासियों को वापस भेजा जा चुका है और यह प्रक्रिया लगातार जारी है। केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर इस अभियान को सफल बना रही हैं। भविष्य में बायोमेट्रिक डेटा और सख्त निगरानी से दोबारा घुसपैठ पर रोक लगाने की कोशिश की जा रही है।
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