परिचय
दल्ली राजहरा शहीद दिवस छत्तीसगढ़ के इतिहास का वह अध्याय है, जो मजदूर आंदोलन की ताकत और संगठित संघर्ष की मिसाल पेश करता है। हर वर्ष 3 जून को मनाया जाने वाला यह दिवस 1977 में 11 मजदूरों की शहादत की याद दिलाता है, जब उन्होंने अपने अधिकारों और न्याय के लिए प्राणों की आहुति दी थी।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
1970 के दशक में दल्ली राजहरा (बालोद, छत्तीसगढ़) लौह अयस्क खनन का प्रमुख केंद्र था। यहां मजदूरों को न्यूनतम वेतन, स्वास्थ्य सुविधाओं और सुरक्षा साधनों के अभाव में शोषण का सामना करना पड़ता था। ठेका मजदूरों को अत्यंत कम मजदूरी और अत्यधिक कार्य घंटे दिए जाते थे, जबकि उनकी कोई संगठित आवाज नहीं थी।
छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा और संगठित संघर्ष
मजदूरों को संगठित करने और उनके अधिकारों के लिए आवाज उठाने का बीड़ा छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा - मजदूर कार्यकर्ता समिति ने उठाया। शंकर गुहा नियोगी के नेतृत्व में मजदूरों को जागरूक किया गया और श्रमिक संगठन का गठन हुआ। नियोगी ने मजदूरों के लिए शराबबंदी, बचत, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी कल्याणकारी योजनाएं शुरू कीं और 'शहीद अस्पताल' की स्थापना की।
3 जून 1977: शहादत का दिन
3 जून 1977 को मजदूरों ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया, लेकिन पुलिस ने गोली चला दी, जिससे 11 मजदूर शहीद हो गए। यह घटना भारतीय मजदूर आंदोलन का ऐतिहासिक मोड़ बन गई, जिसने पूरे क्षेत्र में आक्रोश और एकजुटता की लहर पैदा की।
इसके बाद क्या हुआ?
इस घटना के बाद आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन मिला। मजदूरों के लिए 'शहीद अस्पताल' की स्थापना हुई, जो आज भी श्रमिकों के लिए स्वास्थ्य सेवा का मॉडल बना हुआ है। संगठन का विस्तार हुआ और मजदूरों के साथ किसानों व आदिवासियों को भी इससे जोड़ा गया।
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शहीद दिवस कैसे मनाया जाता है?
हर वर्ष 3 जून को दल्ली राजहरा में श्रमिक संगठन, छात्र और सामाजिक कार्यकर्ता एकत्र होते हैं। शहीद स्मारक पर श्रद्धांजलि दी जाती है, मजदूर गीत गाए जाते हैं, गोष्ठियां और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। इस दिन मजदूरों के संघर्ष और बलिदान को याद किया जाता है।
मीडिया और आंदोलन
मुख्यधारा मीडिया ने इस आंदोलन को अपेक्षाकृत कम जगह दी, लेकिन वैकल्पिक मीडिया, लेखकों और डॉक्युमेंट्रीज़ ने इसे अमर बना दिया। आज भी स्थानीय पत्रिकाएं, किताबें और फिल्में इस संघर्ष की गाथा को आगे बढ़ा रही हैं।
दल्ली राजहरा की पहचान
आज दल्ली राजहरा सिर्फ लौह अयस्क के लिए नहीं, बल्कि श्रमिक अधिकारों के प्रतीक स्थल के रूप में भी जाना जाता है। यहां के मजदूर आंदोलन ने पूरे देश में संगठित संघर्ष की मिसाल कायम की है।
निष्कर्ष
दल्ली राजहरा शहीद दिवस हमें सिखाता है कि जब लोग एकजुट होकर अन्याय के खिलाफ खड़े होते हैं, तो बदलाव संभव होता है। यह सिर्फ इतिहास नहीं, बल्कि आज भी संघर्ष, चेतावनी और प्रेरणा का स्रोत है।
✍️ यह लेख प्रस्तुत किया गया: Daily Viral News Dalli
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