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छत्तीसगढ़ का महापर्व तीजा-पोरा 2025: जानें करू भात, पूजा विधि और महत्व | Teeja Festival Chhattisgarh

छत्तीसगढ़ का गौरव: तीजा-पोरा तिहार 2025

छत्तीसगढ़, जहाँ की मिट्टी में लोक-संस्कृति की सुगंध बसी है, वहाँ का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण त्योहार है 'तीजा'। यह सिर्फ एक व्रत नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ी महिलाओं की अस्मिता, उनके आत्म-सम्मान और मायके से जुड़े उनके भावनात्मक बंधन का महापर्व है।




सावन का महीना आते ही हर छत्तीसगढ़ी विवाहिता को अपने मायके से 'तीजा' का बुलावा आने का इंतजार रहता है। [1] यह वह समय होता है जब पिता या भाई अपनी विवाहित बेटी या बहन को सम्मानपूर्वक उसके ससुराल से मायके लाने जाते हैं, जिसे 'लेवई जाना' कहते हैं। [4] यह परंपरा इस त्योहार की आत्मा है। इस दिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और भगवान शिव-पार्वती की आराधना करती हैं। [3]

📅 तीजा-पोरा 2025: तिथि और मुहूर्त

छत्तीसगढ़ में 'तीजा' का पर्व भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है, जिसे **हरतालिका तीज** भी कहते हैं। [6] हरियाली तीज सावन में मनाई जाती है, लेकिन छत्तीसगढ़ का मुख्य तीजा व्रत हरतालिका तीज ही है।

  • हरतालिका तीजा (तीजा) की तारीख: 25 अगस्त 2025, सोमवार
  • पोरा तिहार की तारीख: 24 अगस्त 2025, रविवार [7]
  • तृतीया तिथि प्रारंभ: 25 अगस्त 2025 को सुबह 05:11 बजे
  • तृतीया तिथि समाप्त: 26 अगस्त 2025 को सुबह 05:27 बजे

🍛 करू भात की अनूठी परंपरा

तीजा व्रत के ठीक एक दिन पहले, यानी द्वितीया तिथि को, 'करू भात' खाने की परंपरा है। [8] इस दिन महिलाएं करेले की सब्जी और चावल खाकर अपने व्रत की शुरुआत करती हैं। मान्यता है कि 'करू' (कड़वा) खाने से शरीर शुद्ध होता है और व्रत के दौरान मन एकाग्र रहता है। यह परंपरा इस त्योहार की एक अनूठी पहचान है।

🌿 छत्तीसगढ़ में तीजा का महत्व

छत्तीसगढ़ में तीजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि महिलाओं के लिए एक स्वतंत्रता और उल्लास का पर्व है। यह मायके में अपनी सखियों के साथ मिलने, झूला झूलने, और अपनी जड़ों से फिर से जुड़ने का अवसर होता है। ससुराल से मायके आकर महिलाएं कुछ दिनों के लिए अपनी सारी जिम्मेदारियों से मुक्त होकर बेटी होने का सुख फिर से जीती हैं।

📖 तीजा की पौराणिक व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कई जन्मों तक कठोर तपस्या की थी। उनके 108वें जन्म में, जब उनके पिता उनका विवाह भगवान विष्णु से करना चाहते थे, तब माता पार्वती की सखियाँ उन्हें हरकर घने जंगल में ले गईं। वहीं पर माता ने रेत के शिवलिंग बनाकर कठोर तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। 'हरत' यानी हरण करना और 'आलिका' यानी सखी, इसीलिए इस व्रत को 'हरतालिका' कहा गया। [10] तीजा का व्रत इसी पौराणिक घटना की याद में किया जाता है।

🙏 संपूर्ण पूजा विधि और परंपराएँ

  • 'करू भात' खाने के बाद महिलाएं निर्जला व्रत का संकल्प लेती हैं।
  • शाम के समय स्नान कर सोलह श्रृंगार करती हैं और सुंदर पारंपरिक परिधान पहनती हैं।
  • रेत या मिट्टी से भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी की प्रतिमाएं बनाई जाती हैं।
  • इन प्रतिमाओं को केले के पत्तों से सजाए गए मंडप में स्थापित किया जाता है।
  • माता पार्वती को सुहाग की सभी वस्तुएं (चूड़ी, बिंदी, सिंदूर, महावर) अर्पित की जाती हैं।
  • पूरी रात जागरण कर भजन-कीर्तन किया जाता है और तीजा की कथा सुनी जाती है।
  • अगले दिन सुबह पूजा के बाद व्रत का पारण किया जाता है।

🍲 तीजा के खास छत्तीसगढ़ी पकवान

तीजा के अवसर पर मायके से बेटी के लिए ढेर सारे पारंपरिक छत्तीसगढ़ी पकवान भेजे जाते हैं, जिन्हें 'सीधा-पारी' भी कहते हैं। ये पकवान इस त्योहार का अभिन्न अंग हैं:

  • ठेठरी: बेसन से बना नमकीन और खस्ता व्यंजन, जो लंबे समय तक खराब नहीं होता।
  • खुरमी: गेहूं के आटे और गुड़ से बनी मीठी और कुरकुरी मठरी।
  • अइरसा: चावल के आटे और गुड़ से बना एक पारंपरिक मीठा पकवान, जिसे घी में तला जाता है।
  • चौसेला: चावल के आटे से बनी मुलायम और फूली हुई पूड़ी।
  • फरा: चावल के आटे से बना भाप में पकाया हुआ व्यंजन, जिसे मीठा और नमकीन दोनों तरीकों से बनाया जाता है।

🐂 पोरा तिहार और इसका महत्व

तीजा से ठीक एक दिन पहले 'पोरा तिहार' मनाया जाता है। यह त्योहार कृषि संस्कृति का प्रतीक है, जिसमें बैलों की पूजा की जाती है। [7] किसान इस दिन अपने बैलों को नहलाकर सजाते हैं, उनकी पूजा करते हैं और उन्हें अच्छे पकवान खिलाते हैं। इस दिन मिट्टी के बने बैल (नंदी) और अन्य खिलौनों से बच्चे खेलते हैं। यह त्योहार जीवन में पशुधन के महत्व को दर्शाता है।

✨ संक्षिप्त सार

तीजा-पोरा का त्योहार छत्तीसगढ़ की संस्कृति, परंपरा और भावनाओं का एक अद्भुत संगम है। यह न केवल पति-पत्नी के प्रेम को दर्शाता है, बल्कि एक बेटी का उसके मायके से जुड़ाव, कृषि के प्रति सम्मान और सामाजिक एकता का भी संदेश देता है। यह उत्सव छत्तीसगढ़ की समृद्ध विरासत का जीवंत प्रमाण है।

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छत्तीसगढ़ के इस खूबसूरत तिहार के बारे में अपने विचार कमेंट्स में जरूर बताएं और इस लेख को अपने परिवार और दोस्तों के साथ शेयर करें ताकि हमारी संस्कृति की यह अनमोल विरासत सब तक पहुंचे। जय जोहार!

Site Credit - Daily Viral News Dalli

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