दल्ली राजहरा गोलीकांड: मजदूरों की शहादत की अनसुनी कहानी

 

दल्ली राजहरा गोलीकांड: मजदूरों की शहादत की अनसुनी कहानी

छत्तीसगढ़ के दल्ली राजहरा में 3 जून 1977 को एक ऐसी घटना घटी, जिसने पूरे मजदूर आंदोलन को झकझोर दिया। अपने हक और अधिकारों की मांग कर रहे निहत्थे मजदूरों पर तात्कालिक सरकार की पुलिस ने बेरहमी से गोलियां चलाईं। इस घटना में 11 मजदूर शहीद हो गए, जिनमें एक बालक सुदामा भी शामिल था।

क्या हुआ था 2-3 जून 1977 को?

दल्ली राजहरा में खदानों में काम कर रहे मजदूर छत्तीसगढ़ माईंस श्रमिक संघ और छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के बैनर तले आंदोलन कर रहे थे। वे अपने श्रम के उचित मूल्य, सुरक्षा और मूल अधिकारों की मांग कर रहे थे।

2 जून की रात और 3 जून की दोपहर को तात्कालिक शासन द्वारा पुलिस फोर्स को मजदूरों पर गोली चलाने का आदेश दिया गया। नवतपा की तपती दोपहर में, बिना किसी हथियार के खदान मजदूरों को निशाना बनाया गया।

शहीद हुए थे 11 साथी

  • बालक सुदामा सहित 11 मजदूर इस गोलीकांड में शहीद हुए।
  • यह घटना छत्तीसगढ़ के मजदूर आंदोलन के इतिहास में काले अध्याय के रूप में दर्ज है।
"शहीदों के मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले, मरने वालों का यही बाकी निशां होगा"

 

शहादत दिवस: हर साल मनाया जाता है 3 जून को


शहादत दिवस: हर साल मनाया जाता है 3 जून को



1978 से लगातार मोर्चा परिवार द्वारा 2 और 3 जून को शहादत दिवस एवं शपथ दिवस के रूप में मनाया जा रहा है।

इस वर्ष भी 3 जून को दल्ली राजहरा में शहीद दिवस मनाया जाएगा, जिसमें मजदूर, किसान, छात्र, बुद्धिजीवी शामिल होंगे।

कोरोना नियमों का पालन करते हुए आयोजन

पिछले कुछ वर्षों में कोविड-19 महामारी के कारण आयोजन सीमित किया गया था, लेकिन श्रद्धांजलि का क्रम नहीं रुका।

शहादत का संदेश

शहीद दिवस केवल एक दिन की श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि एक संकल्प है – अधिकारों की रक्षा, न्याय और इंसाफ की लड़ाई का।

इस वर्ष 3 जून को जब आप दल्ली राजहरा जाएं, तो शहीदों को याद कर उनके सपनों को जिंदा रखने का प्रण लें।


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