🧠 एक सोच बदलाव की
अगर काली कमाई के रास्ते बंद हो जाएं, तो नोटबंदी की ज़रूरत ही क्यों पड़े? ये सवाल एक डॉक्टर ने पूछा और समाज को आईना दिखा दिया। असल में, जब तक सिस्टम में भ्रष्टाचार और मुनाफाखोरी के रास्ते खुले हैं, तब तक किसी भी बड़े बदलाव या नोटबंदी जैसे कदम का असर सीमित ही रहेगा।
नोटबंदी का उद्देश्य काले धन पर रोक लगाना था, लेकिन क्या वाकई इससे आम आदमी को राहत मिली? हकीकत यह है कि जब तक सिस्टम में पारदर्शिता और ईमानदारी नहीं आएगी, तब तक कोई भी आर्थिक सुधार अधूरा रहेगा।
📉 कुछ चौंकाने वाले उदाहरण
मेडिकल सेक्टर में आम आदमी कैसे शिकार बनता है, इसके कुछ उदाहरण:
इलाज/दवा | असली कीमत | मरीज से वसूली गई कीमत |
---|---|---|
Streptokinase (Heart Attack) | ₹900 | ₹9,000 |
Monocef (Typhoid) | ₹25 (होलसेल) | ₹53 |
Dialysis के बाद इंजेक्शन | ₹500 | ₹1,800 |
Antibiotic (Salt) | ₹45 | ₹540 |
Ultrasound | ₹240 (चैरिटेबल) | ₹750 |
MRI कमीशन | - | ₹2,000+ |
फार्मा कंपनियाँ और डॉक्टरों की मिलीभगत ने आम आदमी की सेहत के साथ खिलवाड़ को एक धंधा बना दिया है।
📺 मीडिया की चुप्पी
जब देश का आम आदमी लूटा जा रहा है, तब मीडिया क्या दिखा रहा है?
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🤔 सबसे बड़ा सवाल – आप क्या करेंगे?
जब ऑटो वाला 20 रुपए ज्यादा मांगता है, तो हम गुस्से में आ जाते हैं। लेकिन अस्पताल या डॉक्टर 1000 रुपए का नुकसान कर दें, तो चुप रहते हैं। आखिर कब तक?
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✍️ यह लेख Daily Viral News Dalli द्वारा जन जागरूकता हेतु प्रकाशित किया गया है।
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